Monday, July 27, 2015

रामेश्‍वरम् (तमिलनाडु) के अल्‍प शिक्षित परिवार में सन् 1931 में जन्‍मे डॉ अवुल पकीर जैनुलाबदीन अब्‍दुल कलाम ने इस महादेश के एक रक्षा वैज्ञानिक के रूप में अपूर्व ख्‍याति अर्जित की। उनकी अद्वितीय उपलब्धियों के लिए उन्‍हें देश के सर्वोच्‍च सम्‍मान ‘भारत-रत्‍न’ से सम्‍मानित किया गया। देश के रक्षा शोध एवं विकास कार्यक्रमों के मुखिया के रूप में उन्‍होंने बंद पड़े शोध प्रतिष्‍ठानों को एक नयी गति दी और उनमें नयी उूर्जा का संचार किया। डॉ अब्‍दुल कलाम की इन्‍हीं विलक्षण उपलब्धियों के चलते वे वर्ष 2002 से 2007 तक देश के 11 वें राष्‍ट्रपति के पद पर सुशोभित रहे।   यह उन्‍हीं की खूबी थी कि उन्‍होंने इस पद को लोकप्रियता और गरिमा की नयी उूंचाई प्रदान की।        डॉ अब्‍दुल कलाम का व्‍यक्तिगत जीवन सादगी, संघर्ष और साधना से भरा रहा है। यह उनकी सृजनात्‍मक प्रतिभा का ही अनूठा पहलू था कि वे अपनी कलात्‍मक सुरुचि के अनुरूप काव्‍य विधा में अपने मन के भावों को उतने ही आत्मिक लगाव से व्‍यक्‍त करने की अपूर्व क्षमता रखते थे। काव्‍य के साथ संगीत में भी उनकी गहरी रुचि थी। शायद यही वजह रही कि दिन में अठारह घंटे काम करने के बीच वे अपने प्रिय वाद्य वीणा वादन का अभ्‍यास उतनी ही उमंग से करते थे। अपनी उपलब्धियों का श्रेय वे अपने शिक्षकों और अपने पथ-प्रदर्शकों को ही दिया करते थे। ऐसे महामहिम व्‍यक्तित्‍व का निधन निश्‍चय ही इस महादेश और मानवता की अपूरणीय क्षति है। उन्‍हें हार्दिक नमन के साथ ही प्रस्‍तुत है उनकी एक अनूठी कविता -  
मां
समंदर की लहरें
सुनहरी रेत,
श्रद्धानत तीर्थयात्री
रामेश्‍वरम् द्वीप की वह छोटी-पूरी दुनिया।
सब में तू निहित,
सब तुझमें समाहित।

तेरी बाहों में पला मैं,
मेरी कायनात रही तू।
जब छिड़ा विश्‍वयुद्ध, छोटा-सा मैं
जीवन बना था चुनौती, ज़िन्‍दगी अमानत
मीलों चलते थे हम
पहुंचते किरणों से पहले।
कभी जाते मंदिर स्‍वामी से लेने ज्ञान,
कभी मौलाना के पास लेने अरबी का सबक,
बांटे थे अखबार मैंने
चलते चलते साये में तेरे।

दिन में स्‍कूल
शाम में पढ़ाई,
मेहनत, मशक्‍कत, दिक्‍कतें, कठिनाई,
तेरी पाक शख्सियत ने बना दीं मधुर यादें।
जब तू झुकती नमाज में उठाए हाथ
अल्‍लाह का नूर गिरता तेरी झोली में
जो बरसता मुझ पर
और मेरे जैसे कितने नसीबवालों पर
दिया तूने हमेशा दया का दान।

याद है अभी जैसे कल ही,
दस बरस का मैं
सोया तेरी गोद में
बाकी बच्‍चों की ईर्ष्‍या का बना पात्र –
पूरनमासी की रात
भरती जिसमें तेरा प्‍यार।
आधी रात में, अधमुंदी आंखों से ताकता तुझे,
थामता आंसू पलकों पर
घुटनों के बल
बाहों में घेरे तुझे खड़ा मैं।
तूने जाना था मेरा दर्द
अपने बच्‍चे की पीड़ा।
तेरी उंगलियों ने
निथारा था दर्द मेरे बालों से,
और भरी थी मुझमें
अपने विश्‍वास की शक्ति -
निर्भय हो जीने की,
जीतने की।
जिया मैं मेरी मां।
और जीता मैं।
कयामत के दिन
मिलेगा तुझसे फिर तेरा कलाम,
मां तुझे सलाम।  
(डॉ ए पी जे अब्‍दुल कलाम की एक प्रसिद्ध कविता )