Tuesday, June 5, 2018



पर्यावरण चेतना री कीं कवितावां –
·        नंद भारद्वाज


वौ गांव
बरसां लारै छूटग्‍यौ वौ गांव
म्‍हारी पगथळियां री पूग सूं बारै  
जठै म्‍हैं जलम्‍यौ,
पळ्यौ अर सांभी जीवण-डोर, 
अमीणी आंमना !   

जद नीं हौ कोई मारग पूगती दीठ में परतख 
म्‍हैं नीसर जावतौ किणी मनचींती सीध में निस्‍संक     
फगत अेक विस्‍वास ई तौ हौ हियै री ओट -
कै आं ही गळियां मांय सूं पूगैला कोई मारग
आछै बगत अर ऊजळै आगम री सीध में
वां काची कंटाळी पगडांड्यां रै पार --       

काळ अर कुजोग री अणूंती मार सूं  
बंचतां, बंचावतां खुद री पगथळियां 
अंवेरियां राख्‍या  हेत-प्रीत री ओळूं रा अैनांण
कीं खारा-मीठा अणभव, भरम अर भोळावा --
अबखा दिनां में पग रोपण री बांण,
उणी नै साध्‍यां–संजोयां जारी राखी जातरा
बिना किणी बीसूंणी,  ढबतां नेगम किणी पड़ाव -     
जठै पतीजै म्‍हारौ अणमणौ अन्तस
धड़कतै काळजै में सरसै सीळी सांस,
बिनां किणी भोळावै कूड़ी आस
म्‍हांनै राखणी है कायम मातभोम अर भासा सूं  
अणतूट अंतस री ऊरमा !
  *** 

जद तांई 

जद तांई खुद री आंख्‍यां सांप्रत
देख्‍यौ नीं हौ समदर
सूरज री अकारी आंच में ऊकळतौ -
बादळां रै आव-जाव माथै
कदेई थ्‍यावस नीं आयौ,
जद तांई जमीं री पुड़तां में  
ऊंडौ ऊतर पतवांण्‍यौ कोनीं  
जड़ां सूं निंवळाई रौ सासतौ सनमन,  
कठोळ जमीं री माठ माथै  
पांघरती-पसरती हरियाळी री हूंस - 
हरमेस बणी रैवती आ ही आसंका
कै कोई उजाड़ नीं देवै
जीवण री आ अधबणी रांमत।  

आंध्‍यां सूं नीं डरपै थळी रौ मानवी    
उणरी सांस नै अटकायां राखै पुरवाई री आस - 
जद वौ पैली बिरखा रै भरोसै
जमीं में पूर देवै जीवारी -
बरतीज जावै आखौ चौमासौ
साव सूनौ अर सूखौ   
फेरूं ई कायम राखै भरोसौ कुदरत रै न्‍याव में,   

थ्‍यावस फगत इत्‍ती 
कै पवन-पांणी अर अर माटी रै गाढै हेत सूं
व्‍हे सकै खुल जावै कोई नवौ मारग -
      जीवण री उम्‍मीदां अणपार !
***

रोही रौ रूंख

बेकळू रेत री भीज्‍योड़ी पुड़तां में 
अेकरसी बण जावै जद ऊगण री आस,   
वा रोही रौ रूंख खेजड़ी
ऊभी व्‍हे जावै काळ रै
अंतहीण पसराव में। 

थे रोप नै देख लौ उणनै कठैई  
वा सांस रै छेकड़लै सांधै तांई
बण्‍योड़ी रैवैला सजीव उणी ठौड़ –
आपरी आडी-डौढी जड़ां रै परवांणै 
वा सांभ लेवै माटी री सामरथ
ऊतरती जावै पुड़तां में संध्‍यां-पार
वा काळ पड़्यां ई सूखै कोनी
निंवळाई रै सोग में।

रुत री पैली बिरखा पछै
ज्‍यूं उजाड़ में ऊग आवै
भांत-भांत री घास अर बेलां
कंटीळा बांठकां री पौध
वा नीं फिरै आडी किणी विगसाव में,

जिण रूपाळी कलमां नै 
मूंघा घमलां में सजाय राखीजै 
घरां री पेड़ियां माथै गरब सूं
वांसूं कोई अदावत कोनी राखै वा
आपरी दावैदारी रै नांव –
नीरांयत बधती आपूं-आप 
फूटती नवी कूंपळां में सान्‍त
               अंतरलीन।

क्‍यारियां में अंगेज नै ऊगाईज सकै
फूलां री अणगिणत किसमां
नुमायस रै नांव माथै घमलां में
भांत-भांत रा बंदी बावना रूंख
वां सूं लव-लेस ई ईसकौ नीं राखै
आ रोही री साख –
उणनै विगसण सारू
नीं व्‍है दरकार सजीला घमलां री  
उणनै तौ चाहीजै खुलै खेत री नरमी   
अर सींव माथै थोड़ी-सी निरवाळी
सीली ठौड़ आपौ सांभण में।

फगत इत्‍तौ-सौ संवेदू भाव  
कै अजांणै कोई चींथ नीं देवै
वां ऊगता दिनां में उणरी काया 
कोई काट नीं देवै निनांण रै ओळावै ।

आपरी जमीं सूं बेदखल हुयां
कठैई नीं पनपैला लीली साख
अणचींता बंधणां में बांध्‍यां
नीं पोखीजै खेजड़ी री जीवारी ।
***

अणभै ओरणां

जद उलट–पळटगी व्‍है आखी स्रस्‍टी
आंधी रै जोरावर हाकै
डूबगी डरियोड़ी चिड़कल्‍यां री चहकार
कुण जांणै कित्‍ता-क दरखत रह्या व्‍हैला साबता
कित्‍ता पंखेरू रह्या व्‍हैला अबोट, कित्‍ता बांठका
प्रजातियां कुण-कुण-सी ऊबरगी व्‍हैला
असांयत रिंधरोही री थाग में।

नैना जीव-पंखेरुवां नै
जे छोड पण देवां कुदरत रै भरोसै,
अंवेरण सांभण सारू फेरूं ई बंचग्‍या व्‍हैला
सासतै जीवण रा परतख मोकळा अैनांण
                कळझळ री कूंख में।
इण सांम्‍ही दीखतै
घायल दरखत री छींयां में
कित्‍ता सरणागतां नै मिळ्या करतौ आसरौ
जिणनै घणै चाव सूं
बडेरां लगायौ बस्‍ती रै सूंवै बीच  
इण भांत रा कुण जांणै कित्‍ता दरखत
जड़ा-मूळ समेत बैयग्‍या व्‍हैला
          तूटतै आवेग में। 

पंखेरू नीं जांणै कै बगत
किण भांत रौ बैवार करैला वांरै साथै
जद सैमूदै हलकै में कुदरत रौ
करळ मच्‍योड़ौ व्‍हैला –
वै उडता रैवैला खितिज रै ईरां-तीरां  
जठै हरिया-भरिया खेत व्‍हैला –
लैरावती व्‍हैला फसलां,  
ढळांणां माथै अळगै तांई
पसरियोड़ी व्‍हैला हरख री लीली आस
कठैई तौ व्‍हैला अणभै ओरणां –
अलभ पंखेरुआं रा जूथ
अचांणचक उड जावण री ऊरमा -     
अडोळा दरखतां में इणी भांत आवैली बहार
यूं ई बरतीज जावैला
           बगत री बेरहम दुस्‍वारियां ।
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