tag:blogger.com,1999:blog-399574878518426944.post325451154465304098..comments2023-11-05T02:15:34.803-08:00Comments on Hathai : औरत की आज़ादी के अलसुलझे सवाल नंद भारद्वाजhttp://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-399574878518426944.post-42922151661775197272013-10-17T02:56:01.159-07:002013-10-17T02:56:01.159-07:00इस पोस्ट की चर्चा, शुक्रवार, दिनांक :-18/10/2013 क...इस पोस्ट की चर्चा, शुक्रवार, दिनांक :-18/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -27 पर. <br />आप भी पधारें, सादर ....नीरज पाल।Niraj Palhttps://www.blogger.com/profile/12597019254637427883noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-399574878518426944.post-13582786458947397662013-08-14T07:27:06.430-07:002013-08-14T07:27:06.430-07:00एकदम मुकम्मल समीक्षा. न सिर्फ किताब का पूरा स्वाद ...एकदम मुकम्मल समीक्षा. न सिर्फ किताब का पूरा स्वाद पाठक तक पहुंचता है, उसकी अहमियत भी बखूबी उजागर होती है.ऐसी ही होनी चाहिए समीक्षा! हार्दिक बधाई! डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04367258649357240171noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-399574878518426944.post-34387281444367106872013-08-14T06:28:42.304-07:002013-08-14T06:28:42.304-07:00कल स्वतंत्रता दिवस है और ऐसे समय में नन्द भारद्वाज...कल स्वतंत्रता दिवस है और ऐसे समय में नन्द भारद्वाज द्वारा नूर जहीर के उपन्यास "अपना खुदा एक औरत" की समीक्षा पढना अच्छा लगा ... देश की आजादी से पहले से चली यह कहानी आज भी स्त्री की परतंत्रता की गाथा है जो बताती है की सामाजिक धार्मिक सोच कुछ इस तरह का मिथ्या महिमा मंडन और स्त्री की परिवार और समाज में भूमिका बांधती है कि स्त्री को आजाद नहीं होने देती.. खुद इस पुस्तक में नूर जहिर का कथन कि “औरत की आजादी की गुत्थी इतनी उलझी हुई इसीलिए है कि मर्दो ने इसको देने या न देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है और औरतों ने मर्दों को, सबसे बुनियादी चीज अगवा करने दिया है – आजादी की परिभाषा और कैसे उसे हासिल किया जाये, क्यों कर उसे जिया जाये।" बहुत कुछ कह जाता है .. इस उपन्यास में साफिया जैसी महिला ने तमाम विरोधों को झेलते हुए समाज का सामना किया .. यही नहीं उसका जहीन पति जो क्रांतिकारी विचारों का पुरुष होता है और अपनी पत्नी की पढाई और अधिकारों को सामान नजरों से देखता है... उसके खिलाफ फतवा जारी होता है ...बाद में वह मारा जाता है.. और खुद उसकी बेटी सितारा जिसको कट्टरपंथी पति द्वारा धोखा दिया जाता है, वह और अमृता जैसा किरदार भी साफिया का साथ नहीं देता ... यह समाज की स्तिथि को दर्शाता है की महिलायें कितनी भी पीड़ित हो वह अपनी आजादी के लिए अभी भी कदम उठाने से कतराती है ... नन्द जी के द्वारा की गयी इस उपन्यास की समीक्षा से जान पड़ता है की निश्चय ही यह उपन्यास स्त्री विमर्श के प्रश्नों को उठाती है और समाज का दर्पण है ... सादरडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-399574878518426944.post-3335182028749350882013-08-14T06:20:58.757-07:002013-08-14T06:20:58.757-07:00This comment has been removed by the author.डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.com