Saturday, May 7, 2011

पेड़ प्रकृति और मनुष्‍य


बस्ती का पेड़

                               
बाहर से आने वाले आघात का
उलटकर कोई उत्तर नहीं दे पाता
                         पेड़
वह चलकर जा नहीं जा सकता
किसी निरापद जगह की आड़ में -

जड़ें डूबी रहती हैं
पृथ्वी की अतल गहराई में
वहीं से पोखता रहता है
वह हर एक टहनी और पत्ती में
                 जीवन संचार

ऐसा घेर-घुमेर छायादार  पेड़
हजारों-हजार पंछियों का
                रैन-बसेरा
पीढ़ियों की पावन कमाई
वह पानीदार पेड़
अब सूख रहा है भीतर ही भीतर
              जमीन की कोख में,

कुदरत के कई रूप देखे हैं
इस हरियल गाछ ने
कई कई देखे हैं
छप्पन-छिनवे के नरभक्षी अकाल -
बदहवास बस्ती ने
सूंत ली सिरों तक
       कच्ची सुकोमल पत्तियां
खुरच ली तने की सूखी छाल ,
उन बुरे दिनों के खिलाफ
पूरी बस्ती के साथ जूझता रहा पेड़
चौपाए आखिरी दम तक आते रहे
इसी की सिमटती छांह में !

पास की बरसाती नदी में
अक्सर आ जाया करता था उफान
पानी फैल जाया करता था
                समूचे ताल में
लोग अपना जीव लेकर दौड़ आते
इसी के आसरे
और वह समेट लेता था
अपने आगोश में
      बस्ती की सारी पीड़ाएं,


समय बदल गया
बदल गये बस्ती के कारोबार
नदी के मार्ग अब नहीं बहता जल
बारहों-मास,
बहुत संकड़ी और बदबूदार हो उठी हैं
कस्बे की गलियां
पुरानी बस्ती को धकेलकर
परे कर दिया गया है नदी के पाट में
और एक नया शहर निकल आया है
इस पुश्‍तैनी पेड़ के अतराफ,


ऊंचे तिमंजिलों के बीच
अब चारों तरफ से घिर गया है पेड़
जहां तहां से काट ली गई हैं
उस फैलती आकांक्षा के
          बीच आती शाखाएं

अखरने-सा लगा है
कुछ भद्र-जनों को पेड़ का अस्तित्व
उनकी नजर में
वे अच्छे लगते हैं सिर्फ उद्यान में !

जब शहर पसरता है
उजड़ जाती हैं पुरानी बस्तियां
सिर्फ पेड़ जूझते रहते हैं
अपनी ज़मीन के लिए
           कुछ अरसे तक .....

पेड़ आखिर पेड़ है
कुदरत का फलता-फूलता उपहार
वह झेल नहीं पाता
अपनों का ऐसा भीतरघात
रोक नहीं पाता
अपनी ओर आते हुए
         जहरीले रसायन -

नमी का उतरते जाना
जमीन की संधियों में मौन
जड़ों का एक-एक कर
         काट लिया जाना -
वह रोक नहीं पाता ......

पहले-पहल सूखी थी
कुछ पीली मुरझाई पत्तियां
फिर सूख गई पूरी की पूरी डाल
और तब से बदस्तूर जारी है
तने के भीतर से आती हुई
धमनियों का धीरे-धीरे सूखना -

इसी सूखने के खिलाफ
निरन्तर लड़ रहा है पेड़ -

क्या नये शहर के लोग
सिर्फ देखते भर रहेंगे
          पेड़ का सूखना ? !

                      ÛÛÛ

खेजड़ी   

बालू रेत की भीगी तहों में
एक बार जब बन जाते हैं उगने के आसार
वह उठ खड़ी होती है काल के
                  अन्तहीन विस्तार में,

तुम रोप कर देख लो उसे कहीं भी
वह सांस के आखिरी सिरे तक
बनी रहेगी सजीव उसी ठौर -
अपनी बेतरतीब-सी जड़ों के सहारे
थाम लेगी माटी की सामर्थ्य
उतरती चली जाएगी तहों  में
                 सन्धियों के पार
सूख नहीं जाएगी नमी के शोक में !

मौसम की पहली बारिश के बाद
जैसे उजाड़ में उग आती हैं
किसिम-किसिम की घास,  लताएं
पौध   कंटीली झाड़ियां
वह अवरोध नहीं बनती किसी आरोह में,

जिन कांटेदार पौधों को
करीने से सजाकर बिठाया जाता है
घरों की सीढ़ियों पर शान से
उनसे कोई अदावत नहीं रखती
अपनी दावेदारी के नाम पर -
वह इतमीनान से बढ़ती है
उमगती पत्तियों में शान्त   अन्तर्लीन ।

क्यारियों में सहेज कर उगाई जा सकती है
फूलों की अनगिनत प्रजातियां
नुमाइश के नाम पर पनपाए जा सकते हैं
गमलों में भांति-भांति के बौने बन्दी पेड़
उनसे रंच मात्र भी रश्‍क नहीं रखती
                     यह देशी पौध -
उसे पनपने के लिए
नहीं होती सजीले गमलों की दरकार
उसे तो खुले खेत की गोद या
सींव पर थोड़ी-सी निरापद ठौर
         सलामत चाहिए शुरुआत में !

और बस इतना-सा सदभाव -
कि अकारण कोई रौंद नहीं डाले
उन उगते दिनों में वह नन्हा आकार -
       काट नहीं डाले निराई के फेर में,


अपनी ज़मीन से बेदखल होने पर
कहीं नहीं पनपेगी इसकी साख
अनचाहे बंधन में बंध कर
नहीं जिएगी खेजड़ी !

7 comments:

  1. शायद खेजडी जैसी ही दृढ जिजीविषा वाली ही है हमारी संस्कृति ...और कविता की अंतिम पंक्तियाँ पुरजोर आवाह्न कर रही है अपनी संस्कृति , अपनी खेजडी को बचाने का

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  2. चिन्तन और मनन के साथ लिखी सुन्दर रचना!
    अब आता रहूँगा यहाँ!

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  3. संवेदनशील कवितायेँ... प्रगाढ़ चिंतन समेटे हुए!

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  4. "छप्पन-छिनवे के नरभक्षी अकाल -
    बदहवास बस्ती ने
    सूंत ली सिरों तक
    कच्ची सुकोमल पत्तियां
    खुरच ली तने की सूखी छाल ,"

    इन पंक्तियों ने तो माँ की बताई हुई बातें याद दिला दी। वे भी कहती हैं कि पशु क्या आदमियों तक ने पेड़ की छाल खा प्राण बचाने की विभीषिका झेली! कैसे ह्रद्य-विदारक रहे होंगे वे दिन!

    भीतर तक मर्म को छू गई "पेड़ प्रकृति और मनुष्‍य"

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  5. बहुत ही अच्छी मनन ,चिंतन में डुबी रचनाये है सर ।
    शुभकामनाएं

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  6. बहुत ही अच्छी मनन ,चिंतन में डुबी रचनाये है सर ।
    शुभकामनाएं

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